प्रिय अभ्यर्थियों,
प्रस्तुत ब्लॉग में मुख्यतः संविदा शाला
शिक्षक भर्ती परीक्षा,
मध्यप्रदेश और अन्य राज्य व राष्ट्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षाओं जैसे सीटीईटी (CTET) आदि हेतु ‘शिक्षा’
से संबन्धित प्रमुख सिद्धांतों की 4 पोस्ट एवं “बाल विकास की अवधारणा- प्रथम भाग” के बाद हम पाठ्यविवरण को दृष्टिगत रखते हुए,
यहाँ “बाल विकास की अवधारणा- द्वितीय भाग” प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है,
आप अवश्य लाभान्वित होंगे।
बाल विकास की अवधारणा- द्वितीय भाग
बाल विकास की अवस्थाएँ
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने
बाल विकास को विभिन्न अलग-अलग अवस्थाओं में
विभाजित किया है। विभिन्न मान्य वर्गीकरणों को नीचे
प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. बाल
विकास को अग्र अवस्थाओं में बांटा जा
सकता है-
1.
गर्भावस्था- गर्भाधन
से जन्म तक,
2.
शैशवावस्था- जन्म
से 5 या 6 वर्ष,
3.
बाल्यावस्था- 6 से
12
वर्ष,
4.
किशोरावस्था- 12 से
18
वर्ष, एवं
5.
प्रौढ़ावस्था- 18 के
बाद।
2. कुछ विद्वान विकास को इस प्रकार से
वर्गीकृत करते हैं-
1.
प्रारम्भिक बाल्यकाल- जन्म
से 12 वर्ष
(शैशव अवस्था- जन्म से 3
वर्ष, पूर्व बाल्यकाल- 3-6,
व
उत्तर बाल्यकाल- 6-12 वर्ष),
2.
पूर्व किशोरावस्था- 12-16
वर्ष,
3.
उत्तर किशोरावस्था- 16-21
वर्ष,
4.
वयस्क अवस्था- 21 के
बाद।
3. रॉस का विभाजन-
1.
शैशवावस्था- जन्म से 3 वर्ष,
2.
पूर्व
बाल्यावस्था- 3 से
6
वर्ष,
3.
उत्तर
बाल्यावस्था- 6 से
12
वर्ष, एवं
4.
किशोरावस्था - 12 से
18 वर्ष।
4. हरलाक का विभाजन-
1. गर्भावस्था – गर्भाधान से जन्म तक
2. शैशवावस्था – जन्म से दो सप्ताह तक (14 दिन)
3. बचपनावस्था – तीसरे सप्ताह से 2-3 वर्ष तक
4. पूर्व बाल्यावस्था – 3 से 6 वर्ष
5. उत्तर बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष
6. वयः संधि अवस्था – 12 से 14 वर्ष
7. पूर्व किशोरावस्था – 14 से 17 वर्ष
8. उत्तर किशोरावस्था – 18 से 21 वर्ष
9. प्रोढ़ावस्था – 21 से 40 वर्ष
10. मध्यवस्था – 40 से 60 वर्ष
11. वृद्धावस्था – 60 के बाद।
आगे शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तीन अवस्थाओं शैशवावस्था, बाल्यावस्था व किशोरावस्था का वर्णन दिया जा
रहा है।
शैशवावस्था
1.
इसे
जन्म के बाद की मानव विकास की प्रथम अवस्था,
जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण काल, सीखने का आदर्श काल (वेलेन्टाइन), भावी
जीवन की नींव का काल, खिलौनों की उम्र आदि नामों से भी जाना जाता है।
2.
क्रो
एवं क्रो ने बीसवीं शताब्दी को बालक की शताब्दी कहा है।
3.
गुडनफ
के अनुसार किसी व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका
आधा 3 वर्ष की उम्र तक ही हो जाता है।
4.
फ्रायड
ने इस अवस्था में लड़कों के मातृ प्रेम को ओडीपस व लड़कियों के पितृ प्रेम को
इलेक्ट्रा काम्प्लेक्स/ग्रंथि कहा है।
प्रमुख विशेषताएँ-
·
शारीरिक
व मानसिक विकास में तीव्रता,
·
सीखने
में तीव्रता,
·
जिज्ञासु
प्रवृत्ति,
·
पर
निर्भरता या दूसरों पर निर्भरता,
·
स्वप्रेम
की भावना (इसे नार्सीसिज्म कहा जाता है),
·
सामाजिक
भावना का अल्प विकास,
·
नैतिक
भावना का अभाव,
·
मूल
प्रवृत्तियों पर आधरित व्यवहार,
·
संवेगों
का प्रदर्शन,
·
कार्यों
को दोहराने की प्रवृत्ति,
·
तीव्र
काम प्रवृत्ति
·
अनुकरण
द्वारा सीखने की प्रवृत्ति।
बाल्यावस्था
इसे जन्म के बाद की मानव विकास की द्वितीय
अवस्था, औपचारिक शिक्षा के प्रारम्भ का काल, प्रारम्भिक
विद्यालयीन उम्र, स्फूर्ति उम्र, गंदी अवस्था व जीवन का अनोखा काल (बच्चें
को समझना कठिन) आदि नामों से भी जाना जाता है।
प्रमुख विशेषताएँ-
·
शारीरिक
व मानसिक विकास में स्थिरता,
·
मानसिक
योग्यताओं में वृद्धि,
·
जिज्ञासा
की प्रबलता,
·
आत्मनिर्भरता
की भावना,
·
रचनात्मक
कार्यों में रुचि,
·
सामाजिक
व नैतिक गुणों का विकास,
·
सामूहिक
प्रवृत्ति की प्रबलता,
·
बहिर्मुखी
व्यक्तित्व का विकास,
·
संग्रह
प्रवृत्ति का विकास,
·
काम
प्रवृत्ति की न्यूनता,
·
रुचियों
में परिवर्तन,
·
उद्देश्यविहीन
घुमने की प्रवृत्ति का विकास,
·
संवेगों
पर नियंत्रण की प्रवृत्ति का विकास,
·
सामूहिक
खेल में रुचि।
किशोरावस्था
1.
किशोरावस्था
का अंग्रेजी पर्याय ‘एडोलेसेन्स’
लैटिन भाषा के शब्द ‘एडेलिसियर’ से
बना है, जिसका अर्थ परिपक्वता की ओर बढ़ना है।
2.
यह
जीवन का सबसे कठिन काल माना जाता है।
3.
इसे
समस्यात्मक अवस्था व टीन एज भी कहा जाता है।
4.
किशोरावस्था
को स्टेनले हाल ने संघर्ष ( Stress), तनाव (Strain), तूफान (Storm), विरोध् (Strife) की
अवस्था कहा है। इसे संक्षिप्त में 4S की अवस्था कहा
जाता है।
·
जरशील्ड
के
अनुसार- किशोरावस्था वह समय है जिसमें
विचारशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है।
·
ब्लेयर, जोन्स
व सिम्पसन के
अनुसार- यह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का वह
काल है, जो बाल्यावस्था के अन्त में आरम्भ होता है और
प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में समाप्त होता है।
किशोर अवस्था के विकास के सिद्धान्त-
किशोर अवस्था के विकास के दो सिद्धान्त है-
1. आकस्मिक विकास का सिद्धान्त -
प्रतिपादकः
स्टेनले हाल (पुस्तक का नाम ‘एडोलेसेन्स’)।
इस
सिद्धान्त के अनुसार
परिवर्तन अचानक होते हैं।
2. क्रमिक विकास का सिद्धान्त –
समर्थकः
किंग, थार्नडाइक,
हालिंगवर्थ।
इस
सिद्धान्त के अनुसार
विकास क्रमबद्ध रूप से होते हैं।
प्रमुख विशेषताएँ-
·
तीव्र
शारीरिक व मानसिक विकास (सर्वाधिक
शारीरिक विकास का काल),
·
स्थिरता
व समायोजन का प्रभाव,
·
घनिष्ठ
व व्यक्तिगत मित्रता,
·
व्यवहार
में अत्यधिक भिन्नता,
·
स्वतंत्रता
और विद्रोह का काल,
·
काम
शक्ति की परिपक्वता,
·
समाज
सेवा की भावना,
·
समूह
का महत्व,
·
रुचियों
में परिवर्तन व स्थिरता,
·
ईश्वर
व धर्म
में विश्वास,
·
वीर/नायक
पूजा की भावना या काल,
·
स्वाभिमान
की भावना,
·
अपराध
प्रवृत्ति का विकास,
·
स्थिति
व महत्व की भावना,
·
व्यवसाय
की चिन्ता।
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