Monday 8 May 2017

राज व्यवस्था - 5- राष्ट्रपति (योग्यता, निर्वाचन , महाभियोग , अधिकार एवं शक्तियाँ)


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              राज व्यवस्था - 5- राष्ट्रपति (योग्यता, निर्वाचन , महाभियोग , अधिकार एवं शक्तियाँ)

                        राजव्यवस्था – राष्ट्रपति

भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है.
Ø 1 भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है. इसलिए राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है.
           राष्ट्रपति
a. राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है.
b. भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम व्यक्ति कहलाता है.

Ø 2. राष्ट्रपति पद की योग्यता: संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्‍ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह:
(a)
 भारत का नागरिक हो.
(b) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो.
(c) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने योग्य हो.
(d)
 चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो.
Ø 3. राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल: 
  इसमें राज्य सभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं. नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पांडिचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है.
Ø 4. राष्ट्रपति-पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचक-मंडल के 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होते हैं.
Ø 5. एक ही व्यक्ति जितनी बार भी चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है.
Ø 6. राष्ट्रपति का निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है.
Ø 7. राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है. निर्वाचन अवैध घोषित होने पर उसके द्वारा किए गए कार्य अवैध नहीं होते हैं.
Ø 8. राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा. अपने पद की समाप्ति के बाद भी वह पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है.
Ø 9. पद-धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति को एक निर्धारित प्रपत्र पर भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी गैरमौजूदगी में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख शपथ लेनी पड़ती है.
Ø 10. राष्ट्रपति निम्न दशाओं में पांच वर्ष से पहले भी पद त्याग सकता है:
(a)
 उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा.
(b)
 महाभियोग द्वारा हटाए जाने पर (अनुच्छेद 56 एवं 61) महाभियोग के लिए केवल एक ही आधार है, जो अनुच्छेद 61(1) में उल्लेखित है, वह है संविधान का अतिक्रमण.

Ø 11. राष्ट्रपति पर महाभियोग: राष्ट्रपति द्वारा संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन पर संसद के किसी सदन द्वारा उस पर महाभियोग लगाया जा सकता है, परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि राष्ट्रपति को 14 दिन पहले ही लिखित सूचना दी जाए, जिस पर उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हों. संसद के उस सदन, जिसमें महाभियोग का प्रस्ताव पेश है, के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित कर देने पर प्रस्ताव दूसरे सदन में जाएगा, तब दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों की जांच करेगा या कराएगा और ऐसी जांच में राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों को सिद्ध करने वाला प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तब राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया पूरी समझी जाएगी और उसी तिथि से राष्ट्रपति को पदत्याग करना होगा. 
Ø 12. राष्ट्रपति की रिक्ति को 6 महीने के अंदर भरना होता है.
Ø 13. जब राष्ट्रपति पद की रिक्ति पदावधि (पांच वर्ष) की समाप्ति से हुई है, तो निर्वाचन पदावधि की समाप्ति के पहले ही कर लिया जाएगा. [अनुच्छेद 61(1)] किन्तु यदि उसे पूरा करने में कोई विलंब हो जाता है तो 'राज-अंतराल' न होने पाए इसिलिए यह उपबंध है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हों जाने पर भी तब तक पद पर बना रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद धारण नहीं कर लेता है, [अनुच्छेद 56(1) ग] (ऐसी दशा में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा.)
(a) राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते: राष्ट्रपति का मासिक वेतन डेढ़ लाख रुपया है.
(b) राष्ट्रपति का वेतन आयकर से मुक्त होता है.
(c) राष्ट्रपति को नि: शुल्क निवासस्थान व संसद द्वारा स्वीकृति अन्य भत्ते प्राप्त होतें हैं.
(d) राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उनके वेतन तथा भत्ते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है.
(e) राष्ट्रपति के लिए 9 लाख रुपये वार्षिक पेंशन निर्धारित की गई है. 


           राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्तव्य 

Ø [1] नियुक्ति संबंधी अधिकार: राष्ट्रपति निम्न की नियुक्ति करता है:
(a) भारत का प्रधानमंत्री,
(b) प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपद के अन्य सदस्यों,
(c) सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों,
(d) भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक,
(e) राज्यों के राज्यपाल,
(f) मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त,
(g) भारत के महान्यायवादी,
(h) राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अंतर्राज्यीय परिषद के सदस्य,
(i) संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों,
(j) संघीय क्षेत्रों के मुख्य आयुक्तों,
(k) वित्त आयोग के सदस्यों,
(l) भाषा आयोग के सदस्यों,
(m) पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों,
(n) अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों,
(o) भारत के राजदूतों तथा अन्य राजनयिकों,
(p) अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में रिपोर्ट देने वाले आयोग के सदस्यों आदि. 

Ø [2] विधाई शक्तियां:  राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है. इसे निम्न विधायी शक्तियां प्राप्त हैं:
(1) संसद के सत्र को आहूत करने, सत्रावसान सभा भंग करने संबंधी अधिकार.
(2) संसद के एक सदन में या एक साथ सम्मिलित रूप से दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति.
(3) लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में सम्मिलित रूप से संसद में अभिभाषण करने की शक्ति.  
(4) संसद दवरा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून बनता है.
(5) संसद में निम्न विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति आवश्यक है:
  (a) नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों   
    में परिवर्तन संबंधी विधेयक
  (b) धन विधेयक [अनुच्छेद 117(1)]
  (c) संचित निधि में व्यय करने वाले विधेयक [अनुच्छेद 117(3)]
  (d) ऐसे कराधान पर, जिसमें राज्य हित जुड़े हैं, प्रभाव डालने वाले 
    विधेयक.
   (e) राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बन्धन लगाने
    वाले विधेयक.

[3] संसद सदस्यों के मनोनयन का अधिकार: 
जब राष्ट्रपति को यह लगे की लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं हैं,  तब तक वह उस समुदाय के दो व्यक्तियों को लोकसभा के सदस्य के रूप में नामांकित कर सकता है. इसी प्रकार वह कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान तथा सामाजिक कार्यों में पर्याप्त अनुभव एवं दक्षता रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा में नामजद कर सकता है.

[4] अध्यादेश जारी करने की शक्ति:
संसद के स्थगन के समय अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव संसद के अधिनियम के समान होता है. इसका प्रभाव संसद सत्र शुरू होने के सप्ताह तक रहता है. परन्तु, राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश नहीं जारी कर सकता, जब दोनों सदन सत्र में होते हैं, तब राष्ट्रपति को यह शक्ति नहीं होती है.

[5] सैनिक शक्ति: सैन्य बालों की सर्वोच्च शक्ति राष्ट्रपति में सन्निहित है, किन्तु इसका प्रयोग विधि द्वारा नियमित होता है.

[6]राजनैतिक शक्ति: दूसरे देशों के साथ कोई भी समझौता या संधि राष्ट्रपति के नाम से की जाती है. राष्ट्रपति विदेशों के लिए भारतीय राजदूतों की नियुक्ति करता है एवं भारत में विदेशों के राजदूतों की नियुक्ति का अनुमोदन करता है.

[7] क्षमादान की शक्ति: संविधान के अनुच्छेद 72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा करने, उसका प्रविलम्बन, परिहार और लघुकरण की शक्ति प्राप्त है.

[8] राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां: आपातकाल से संबंधित उपबंध भारतीय संविधान के भाग-18 के अनुच्छेद 352 से 360 के अंतर्गत मिलता है. मंत्रिपरिषद के परामर्श से राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात लागू कर सकता है:
   (a) युद्ध या वाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाया गया आपात  
    (अनुच्छेद 352)
   (b) राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात
    (अनुच्छेद 356) (अर्थात राष्ट्रपति शासन)
   (c) वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360) (न्यूनतम अवधि दो महीने).


[9] राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्‍व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है. 

[10] राष्ट्रपति की किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की सीमा का आभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है, क्यूंकि अनुच्छेद 111 केवल यह कहता है कि यदि राष्ट्रपति विधेयक लौटाना चाहता है, तो विधेयक को उसे प्रस्तुत किए जाने के बाद यथशीघ्र लौटा देगा. जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग का उदहारण है, 1986 ई० में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक, जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई निर्णय नहीं लिया.
      
                           शेष अगले भाग मे........... 


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