सिंधु घाटी सभ्यता-3 (नगर योजना , धार्मिक आर्थिक स्थिति , लिपि ,पतन ,कृषि)
सिंधु घाटी सभ्यता – महत्वपूर्ण तथ्य 3
नगर योजना
Ø हड़प्पा
सभ्यता एक विकसित नगरीय सभ्यता थी । इसका नगर नियोजन विशिष्ट एवं अपनी समकालीन
सभ्यताओं से श्रेष्ठ था ।
Ø अधिकांश
नगर पूर्वी ओर पश्चिमी दो भागो मे बंटे हुएँ है जिनमे पश्चिमी भाग दुर्गीकृत तथा
अधिक ऊंचाई पर है जबकि पूर्वी भाग अदुर्गीकृत है ।
Ø नगर
योजना ग्रिड प्रणाली (जाल प्रणाली या समकोणिक पद्धति) पर आधारित थी जो नगर को कई
आयताकार खंडो मे बांटती है ।
Ø सभी
सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती है तथा सड़के एक निश्चित अनुपात मे बनी है ।
Ø जल निकास प्रणाली या नालियों की व्यवस्था सिंधु
घाटी सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी। ये ईंटों या पत्थर से ढकी हुई होती थी ।
Ø हड़प्पा
, मोहन जोदाड़ो ओर अन्य प्रमुख नगरों मे पकी हुई ईंटों का प्रयोग भी
आश्चर्यजनक है । अन्य समकालीन सभ्यताओं मे कच्ची धूप मे सुखाई गई ईंटों का ही
प्रयोग होता था ।
Ø कालीबंगा
व रंगपुर नगर मे कच्ची ईंटों का ज्यादा प्रयोग था । इंटे एक निश्चित अनुपात 4:2:1
मे बनी हुई आयताकार थी।
Ø एल(L) आकार की इंटे तथा स्नानागार के फर्श के लिए जलरोधी ईंटों का प्रयोग भी
होता था ।
Ø प्रत्येक
घर मे एक आँगन , रसोईघर तथा स्नानघर बने हुए थे ।
Ø निजी
आवास ग्रहों के अलावा कई विशाल सार्वजनिक भवनो , विशाल स्नानागार , अन्नागार ,
सभाभवन आदि के साक्ष्य भी मिले है । दो कमरों से लेकर दो मंज़िला विशाल भवनों के
साक्ष्य भी प्राप्त हुए है ।
Ø घरों
के मुख्य द्वार मुख्य सड़क की जगह पिछवाड़े या गलियों मे खुलते थे ।
Ø कुएं
अधिकांश घरो मे थे कालीबंगा मे तो लगभग हर घर मे कुएं थे ।
सिंधु सभ्यता का धर्म
Ø सिंधुवासी स्त्री की मातृदेवी के रूप मे उपासना
करते थे । इस आधार पर इसे मातृप्रधान सभ्यता भी माना जाता है ।
Ø भगवान शिव की उपासना पशुपति महादेव के रूप मे की
जाती थी। प्राप्त मुहरों पर तीन सिर एवं दो सिंग वाले देवता जो बाघ, हाथी ओर गेंडे से घिरा है । जिसके सिंहासन के नीचे एक भैस तथा फेरों के
पास दो हिरण है । इसे ही पशुपति महादेव , शिव या आध्यशिव
माना जाता है ।
Ø पीपल ,तुलसी, कूबड़वाला बैल, सांड, साँप आदि
की भी पूजा की जाती थी ।
Ø सूर्य
एवं नदी पूजा के भी साक्ष्य है । स्वस्तिक चिन्ह की प्राप्ति को सूर्य पूजा का
प्रतीक माना जाता है ।
Ø यद्यपि
मंदिरों के अवशेष नहीं मिले है पर संभवतः मूर्ति पूजा होती थी ।
व्यापार
वाणिज्य एवं आर्थिक जीवन
Ø सिंधु
घाटी के लोगो के समकालीन मिस्र, मेसोपोटामिया ओर सुमेर की
सभ्यताओं से व्यापारिक संबंध थे ।
Ø लोथल
मे कृत्रिम बन्दरगाह के अवशेष अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमाण है । मुहरो पर
जहाज के चित्र भी प्राप्त हुए है ।
Ø समान्यतः
वस्तु विनिमय प्रचलित था ।
Ø सुमेरियन
लेखों मे ‘मेलुहा’ शब्द सिंधु घाटी
के लिए प्रयोग किया गया है ।
Ø लोथल
से फारस की मुहरे तथा कालीबंगा से बेलनाकार मुहरें भी विदेशी व्यापार को प्रमाणित
करती है ।
Ø मापतोल
की इकाई 16 के अनुपात मे होती थी । मोहनजोदड़ो से सीपी का स्केल ओर लोथल से हाथी
दाँत का स्केल प्राप्त हुआ है ।
Ø सिंधु
वासियों को लोहे का ज्ञान नहीं था ।
Ø सिंधु
वासियों को सर्वप्रथम कपास उत्पन्न करने का श्रेय है । यूनानी अभिलेखों मे कपास को
‘सिंडोन’ कहा गया है अर्थात जिसकी उत्पत्ति सिंध से
हुई ।
लिपि
Ø हड़प्पा लिपि भाव चित्रात्मक या अक्षर सूचक मानी
जाती है । जिसमे 250 से 400 तक चित्र वर्ण है ।
Ø सिंधु
लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती है । अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है ।
Ø सिंधु
लिपि का सर्वप्रथम नमूना 1853 मे प्राप्त हुआ था ।
सिंधु
सभ्यता का पतन
Ø सिंधु घाटी के पतन या नष्ट होने
को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है ।
Ø गार्डन
चाइल्ड एवं मोर्टिमर व्हीलर के अनुसार इसका पतन आर्यों के आक्रमण से हुआ ।
Ø अर्नेस्ट
मेके एवं जॉन मार्शल बाढ़ से हुए विनाश को इसके पतन का कारण मानते है ।
Ø ओरेल
स्टाइन तथा ए.एन.घोष जलवायु परिवर्तन को इसके नष्ट होने का कारण बताते है ।
Ø जॉन
मार्शल ने प्रशासनिक शिथिलता को भी सिंधु सभ्यता के पतन का कारण माना है।
Ø डी.डी.
कोशाम्बी ने अग्निकांड को पतन का कारण बताया है ।
अन्य तथ्य
Ø सिंधु
सभ्यता के निर्माता कोन है इस पर भी इतिहासकारों मे मतभेद है पर सामान्य मत है की
स्थानीय वासी ‘द्रविड़’ ही इसके निर्माता
है ।
Ø सिंधु
समाज विद्वान, योद्धा, व्यावसायी ओर
श्रमिक इन चार वर्गों मे विभाजित था ।
Ø सिंधु
वासी ऊनी एवं सूती दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे ।
Ø सिंधु
घाटी मे घोड़े के अस्थि पंजर सुरकोटड़ा से प्राप्त हुए है । पर ये उत्तरकालीन अवस्था
के है । समान्यतः इस सभ्यता मे घोड़े का उपयोग एवं प्रचलन नहीं था ।
Ø चावल
के साक्ष्य लोथल से एवं धान की भूसी लोथल एवं रंगपुर से प्राप्त हुई है ।
Ø राजस्थान
के कालीबंगा से हल के प्रयोग के साक्ष्य भी प्राप्त हुए है ।
Ø सिंधु
सभ्यता कांस्य युग से संबंध रखती है । लोहे का ज्ञान नहीं था ।
Ø काल निर्धारण
सर जॉन मार्शल – 3250 से 2750
मोर्टिमर व्हीलर – 2500 से 1500
Ø स्टुअर्ट
पिग्गट के अनुसार सिंधु शासन व्यवस्था पर पुरोहित वर्ग का प्रभाव था । ओर इस पर दो
राजधानियों से शासन होता था ।
Ø व्हीलर
ने भी शासन मे धार्मिक प्रभाव को स्वीकार किया है ।
Ø सिंधु
वासी तांबे के साथ तीन मिलाकर कांसा तैयार करते थे ।
Ø सिंधु
घाटी से प्राप्त अधिकांश मुहरें सेलखड़ी से निर्मित है । वर्गाकार मुहरे ज्यादा प्रचलित
थी ।
Ø आंशिक
शवाधान – हड़प्पा से , कलश शवाधान – मोहन जोदड़ो से तथा प्रतिकात्मक
शवाधान –कालीबंगा से प्राप्त हुए है ।
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