Thursday 11 May 2017

राज व्यवस्था - 6 - संविधान : नीति निर्देशक तत्व



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                    राजव्यवस्था – संविधान / नीति निर्देशक तत्व 
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
                  राज्य के नीति निर्देशक सिंद्धांत का वर्णन संविधान के भाग-4 में (अनुच्छेद 36 से 51 तक) किया गया है. इसकी प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से मिली है. इसे न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता यानी इसे वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है.
Ø  राज्य नीति निर्देशक सिंद्धांत निम्न हैं:

Ø  अनुच्छेद 38 कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे नागरिक को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा.
Ø  अनुच्छेद 39 (क) सामान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता, समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था इसी में है.
Ø  अनुच्छेद 39 (ख) सार्वजनिक धन का स्वामित्व तथा नियंत्रण इस प्रकार करना ताकि सार्वजनिक हित का सर्वोत्तम साधन हो सके.
Ø  अनुच्छेद 39 (ग) धन का समान वितरण. 

Ø  अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन. 

Ø  अनुच्छेद 41 कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार. 

Ø  अनुच्छेद 42 काम की न्याय-संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध. 

Ø  अनुच्छेद 43 कर्मकारों के लिए निर्वाचन मजदूरी एवं कुटीर उघोग को प्रोत्साहन. 

Ø  अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता. 

Ø  अनुच्छेद 45 सभी बालकों को 14 वर्ष तक की आयु पूरी करने तक निःशुल्क ओर अनिवार्य शिक्षा देना ।

Ø  अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और अर्थ-संबंधी हितों की अभिवृद्धि. 

Ø  अनुच्छेद 47 पोषाहार स्तर, जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वाथ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य. 

Ø  अनुच्छेद 48 कृषि एवं पशुपालन का संगठन. 

Ø  अनुच्छेद 48 (क) पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा. 

Ø  अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्‍व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण. 

Ø  अनुच्छेद 50 कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का पृथक्करण. 

Ø  अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि.



Ø  उपर्युक्त अनुच्छेद के अतिरिक्त कुछ ऐसे अनुच्छेद भी हैं, जो राज्य के लिए निदेशक सिंद्धांत के रूप में कार्य करते हैं; जैसे:
अनुच्छेद 350 (क) प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देना.
अनुच्छेद 351 हिंदी को प्रोत्साहन देना.



                                     प्रमुख तथ्य 


  •  राज्य के नीति-निर्देशक तत्व का वर्णन संविधान के  भाग 4  में किया गया है । 
  • संविधान के अनुच्छेद 36 से 51  में राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों  का जिक्र है । 
  • आयरलेंड  से 'राज्य के नीति-निर्देशक तत्व' की प्रेरणा मिली है ?
  • राज्य  के नीति-निर्देशक तत्व को न्यायपालिका  द्वारा लागू नहीं  किया जा सकता है अर्थात ये वाद योग्य नहीं है । 
  • राज्य  के नीति-निर्देशक तत्वों को संविधान मे शामिल किए जाने का मुख्य उद्देश्य सामाजिक ओर आर्थिक प्रजातन्त्र के साथ कलयंकारी राज्य की स्थापना करना है । 
  • अनुच्छेद 36 मे राज्य की परिभाषा का उल्लेख है जबकि 37 मे कहा गया है कि नीति निर्देशक  तत्व देश के शासन मे मूलभूत है  और विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। ये सिद्धांत किसी न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं होंगे। 
  • के.टी. शाह - "नीति-निर्देशक तत्व उस चेक के समान हैं जिसका भुगतान बैंक की इच्छा पर छोड़ दिया गया है." 



                                     मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों में अंतर
  • मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू किए जा सकते हैं, वहीं राज्य नीति के निर्देशक तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं किए जा सकते अर्थात मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि  नीति-निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।
  • मौलिक अधिकार नकारात्मक हैं जबकि  नीति निर्देशक तत्व सकारात्मक हैं।
  • मौलिक अधिकारों के द्वारा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना की गई है जबकि नीति-निर्देशक सिद्धांतों द्वारा सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना कि गई ।
  • मौलिक अधिकारों का कानूनी महत्व है, जबकि निदेशक तत्व मात्र  नैतिक दिशा निर्देश है जिसे माने जाने हेतु राज्य बाध्य नहीं है ।
  •   मौलिक अधिकार सार्वभौम नहीं हैं, उन पर कुछ प्रतिबंध हैं, जबकि निदेशक सिद्धांतों पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

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