जीव विज्ञान- मूलभूत अवधारणाएँ: भाग-2
कोशिका संरचना (Cell Structure)
·
सामान्यतः सभी कोशिकाओं को संरचनात्मक रूप से तीन भागों में
बाँट सकते हैं-
अ) प्लाज़्मा
झिल्ली या कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)
ब) कोशिका
द्रव्य (Cytoplasm), और
स) केंद्रक (Nucleus)
अ) प्लाज़्मा झिल्ली या कोशिका
झिल्ली (Cell Membrane)
·
यह कोशिका की सबसे बाहरी परत होती है।
·
यह कोशिका को आकार एवं कोशिकांगों को सुरक्षा प्रदान करने का
कार्य करती है।
·
कोशिका द्रव्य और केंद्रक दोनों कोशिका झिल्ली से घिरे रहते
हैं।
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यह अर्ध पारगम्य झिल्ली होती है, जो फास्पोलिपिड और प्रोटीन की दो परतों
से बनी होती है।
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यह चयनात्मक पारगम्यता का गुण प्रदर्शित करती है अर्थात चयनित पदार्थों
के कोशिका के अंदर एवं बाहर आदान प्रदान को नियंत्रित करती है।
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इसी झिल्ली के द्वारा विसरण और परासरण की क्रिया होती है।
कोशिका भित्ति (Cell Wall)
केवल
पादप कोशिकाओं में कोशिका झिल्ली के ऊपर सेल्यूलोज़ की बनी एक पारगम्य आवरण पाया
जाता है, जिसे कोशिका भित्ति कहा जाता है। यह कोशिका के आकार एवं आकृति
को बनाए रखने में सहायता करती है।
ब) कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)
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कोशिका के अंदर कोशिका झिल्ली और केंद्रक के बीच पाये जाने
वाला द्रव्य कोशिका द्रव्य कहलाता है।
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यह रंगहीन, पारभाषी तथा समांगी कोलायडी तंत्र के
रूप में पाया जाता है।
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कोशिका द्रव्य के दो भाग होते हैं-
अ) आधात्री या हायलोप्लाज़्म-
·
यह कोशिका द्रव्य का अजीवित भाग होता है।
·
जो कोशिकांगों के लिए आधार का कार्य करता है।
ब) कोशिकांग या ट्रोफोप्लाज़्म-
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हायलोप्लाज़्म में बिखरी व्यवस्थित रचनाओं को कोशिकांग कहा जाता
है।
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यह कोशिका द्रव्य का जीवित भाग होता है।
प्रमुख कोशिकांगों का संक्षिप्त वर्णन
माइटोकांड्रिया
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यह दोहरी झिल्ली से घिरी रचना है।
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इसकी आंतरिक झिल्ली में अंगुली के समान उभार पाये जाते हैं।
इन्हें क्रिस्टी कहा जाता है। क्रिस्टी पर पाये जाने वाले छोटे-छोटे कण ऑक्सीसोम्स कहलाते है।
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इसमें भोज्य पदार्थों का आक्सीकरण किया जाता है।
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इस आक्सीकरण से उत्पन्न ऊर्जा को ATP के
रूप में संग्रहित किया जाता है।
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इस ATP का
उपयोग शरीर में होने वाले जैविक कार्यों में किया जाता है। इसी कारण इसे कोशिका का
ऊर्जा गृह/बिजली घर (Power
House ) कहा जाता है।
राइबोसोम-
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यह प्रोटीन तथा आर. एन. ए. की समान मात्राओं के बने होते हैं।
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यह प्रोटीन निर्माण का कार्य करता है। इसी कारण इसे कोशिका की
प्रोटीन फेक्ट्री कहा जाता है।
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गाल्गीकाय-
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इसे कोशिका के अणुओं का यातायात प्रबन्धक कहा जाता है।
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ये अनेक प्रकार के स्त्रावी पदार्थों का निर्माण करते हैं।
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शुक्राणु जनन के समय शुक्राणु के ऊपरी भाग (एक्रोसोम) का
निर्माण करते हैं।
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (एंडोप्लाज़्मिक रेटीकुलम)-
·
यह प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है।
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कोशिका के अंदर आनुवांशिक पदार्थों का संवहन करता है।
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कोशिका विभाजन के समय यह केन्द्रकीय झिल्ली के निर्माण में भाग
लेता है।
लायसोसोम-
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यह बाहरी पदार्थों का भक्षण एवं पाचन का कार्य करता है।
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इसमें विभिन्न प्रकार के पाचक एंजाइम पाये जाते हैं।
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यह अनशन या रोग की स्थिति में शरीर को पोषण देने का कार्य करते
हैं।
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भोजन की कमी के समय यह स्व-कोशिकांगों का ही पाचन करते हैं।
इसलिए इन्हें आत्महत्या की थैली (Suicide Vesicle) भी
कहा जाता है।
सेण्ट्रोसोम
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यह केवल जन्तु कोशिकाओं और शैवाल तथा कवक की कोशिकाओं में पाये
जाते है।
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यह कोशिका विभाजन के समय स्पिण्डल फाइबर,
सिलिया एवं फ्लेजिला में बेसल बॉडी तथा शुक्राणु में अक्षीय तन्तु बनाने का कार्य
करते है।
लवक
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यह केवल पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
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यह तीन प्रकार के होते हैं-
अ) हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट)- यह अपने अंदर पाये जाने वाले पर्णहरित
(क्लोरोफिल) की सहायता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोज्य पदार्थ बनाता
है। इसलिए इसे पादप कोशिका की रसोई कहा जाता है।
ब) अवर्णी लवक (ल्यूकोप्लास्ट)-
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यह पौधों के जिन भागों में प्रकाश नहीं पहुँचता है,
वहाँ भोज्य पदार्थों का संग्रह करने वाले रंगहीन लवक है।
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ये तेल, वसा तथा स्टार्च का संचय करते हैं।
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ये भूमिगत जड़, तना आदि की कोशिकाओं में पाये जाते
हैं।
स) वर्णीलवक (क्लोरोप्लास्ट)-
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ये प्राय: लाल, पीले तथा नारंगी रंग के होते हैं।
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ये प्रकाश अवशोषित करने में सहायक है।
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ये पुष्प, फलभित्ति,
बीज आदि में पाये जाते हैं।
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टमाटर में लाइकोपिन, गाजर में कैरोटीन तथा चुकंदर में
बीटानीन इसके ही उदाहरण हैं।
स) केंद्रक (Nucleus)
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केंद्रक की खोज राबर्ट ब्राउन ने वर्ष 1831 में की।
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यह कोशिका की समस्त जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
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केंद्रक में केंद्रिका (Nucleolus)
पायी जाती है, जिसमें RNA का
संश्लेषण होता है।
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केंद्रक के दो प्रमुख भाग होते हैं-
अ) क्रोमेटीन पदार्थ- यह प्रोटीन और DNA से बना होता है। यह क्रोमेटीन ही कोशिका
विभाजन के समय सिकुड़कर एवं संगठित होकर गुणसूत्र बनाता है। इन पर बहुत से जीन
उपस्थित होते हैं, जो आनुवंशिकी के वाहक होते हैं। जीन गुणसूत्र की कार्यात्मक
इकाई कहलाते हैं।
ब) केंद्रक
द्रव्य- यह पारदर्शी, अर्धतरल व कणिकीय द्रव्य होता है,
जिसमें क्रोमेटीन पदार्थ पाये जाते हैं। यह प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल तथा खनिज लवणों का बना
होता है।
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